तुम कौन हो


यही सवाल मैं खुदसे पूछता रहता हूं , 
तुम कौन हो, जो मेरी जिन्दगी बदल गयी हो ।

मुझे हर चीज यूं तो हद में अच्छी लगती थीं , 
पर तुम कौन हो, जो मेरी आदत सी बन गयी हो ।

जो रहा करता था बेफिक्रो की तरह, करता था हमेशा बहाने,
पर तुम कौन हो, जिसे देखकर खुद को लगा हूं संवारने ।

यूं तो मैं रहा करता था गुमसुम, न करता था किसिसे बाते,
पर तुम कौन हो, जिससे अपने सुख दुःख लगा हूं बांटने ।

कल तक जो थी तुम किस्सा कहानियों का मेरी,
पर तुम कौन हो जिसे बनाना चाहता हूं हिस्सा जिन्दगी का अपनी ।

चाहे लाख दफा हो जाऊ नाराज़ तुमसे,
न जाने तुम कौन हो जिसका दामन थाम लेता हूं फिरसे ।

तुम ख़्वाब हो कोई या कोई हक़ीक़त हो,
आख़िर तुम कौन हो जो मेरी हर कविता में बसती हो ।
 
- हुमेश कुरसुंगे

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